भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो यह सभी के लिए है पर OCD वालों को तो इसको जिंदगी में जरूर अपनाना चाहिए। क्योंकि OCD वाले कुछ ज्यादा ही फल की इच्छा में लगे रहते हैं। कभी तो बिना इच्छा किए कर्म करो। ये किया तो बुरा हो जाएगा वह नहीं किया तो बुरा हो जाएगा। सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी है, खुद को ही कर्ता मान लेते हैं और फिर सोचते है कि हमारी जिम्मेदारी है सबको बचने की अगर हम safety seeking behaviour (आपकी नजरों में जो कर्म है) नहीं करेंगे तो पता नहीं क्या हो जाएगा।
जरा ध्यान से सोचिए कि कर्मों का फल हमें कौन देता है? कर्मों का फल हम खुद Decide नहीं कर सकते कि हमने अच्छा किया,तो हमारे साथ अच्छा होगा बुरा किया,तो बुरा होगा। कुछ गलत सोचा तो सजा मिलेगी। करवाने वाला और फल देने वाला इंसान नहीं भगवान है जब देने वाला वो है, तो फिर हम कौन होते हैं यह Decide करने वाले की हमारे करने ना करने से कुछ हो जाएगा। जब संसार में उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता तो फिर सारी जिम्मेदारी आपकी कैसे हो गई ?
तो दोस्तों अपने कंधों पर से बोझ उतारिए और सब कुछ भगवान पर छोड़ दीजिए। जब भी कोई कर्म करें खुद को कर्ता भाव से मुक्त रखें। ऐसा सोचे कि ये कर्म भी भगवान का इसका फल भी भगवान का। मैं कर्ता नहीं हूं। अच्छा बुरा जो भी होगा वो भगवान की जिम्मेदारी मेरी नहीं। खुद एक बच्चे की तरह रहिए जैसे एक बच्चा माता-पिता की छाया में रहता है ,बेफिक्र होकर l उसी तरह आप भी सब कुछ उस परमपिता को सौंप कर आराम से रहिए। याद रखिए अगर समर्पन कर रहे हैं तो वो पूरा होना चाहिए आधा अधूरा नहीं। कर्म करते वक्त फल की इच्छा का त्याग कर दीजिए। खुद को कर्ता भाव से मुक्त रखिए। जब आप ऐसे करेंगे तो आप जिम्मेदारी की भावना से निकल जाएंगे और आपको शांति महसूस होगी। जिससे आपकी टेंशन कम होगी और आपको को OCD की चक्रव्यूह से निकलने में मदद मिलेगी।
तो दोस्तों सौंप दीजिए सब कुछ उस परमपिता को ,और आनंद से रहिए उसकी छाया तले।
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