पोट्टी का ज्ञान और मनोविज्ञान

पोट्टी का ज्ञान और मनोविज्ञान

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दोस्तों पोट्टी गन्दी कैसे है सबसे पहले ये सोचने की जरूरत है, कौन कह रहा है की पोट्टी गन्दी होती है, हां ये बात अलग है की आप पोट्टी को गंदा मान रहे हैं, सबकी अपनी अपनी विचारधारा है, और OCD में बस यही बात समझने वाली है की हमारे मन पर किसी अनुभव से कुछ ऐसी गलत छाप पड़ गयी है की वो पोट्टी को गन्दा मान रहा है।

पोट्टी असल में है क्या?

ध्यान दिया जाये तो पोट्टी हम जो भोजन खाते हैं उसीका एक रूप है,बस शरीर के अंदर कुछ गैसों के कारण उसमें कुछ बदबू आ गयी होती है,यहाँ सोचने वाली बात ये है की कुदरत ने खाना पचाने का ये सिस्टम नहीं बनाया होता तो हमें भोजन की शक्ति जिसमें विभिन्न प्रकार के विटामिन,न्यूट्रिएंट्स, कैल्शियम आदि कैसे प्राप्त होते,दोस्तों पोट्टी बनना तो एक ऐसी जैविक परिक्रिया है जिसके बिना हमारे शरीर की कल्पना भी नहीं हो सकती।

देखा जाये तो पोट्टी का बनना और शरीर से बाहर निकलना उतना ही जरूरी है जितना हमारा भोजन को खाना जैसे हम भोजन के बिना नहीं रह सकते वैसे ही पोट्टी के बिना भी नहीं रह सकते,पोट्टी को गन्दा मानने से पहले हमें भोजन को गन्दा मानना होगा और इस भावना से ग्रसित लोगों के लिए तो एक सुझाव है की भूखा रहा जाए भोजन किया ही ना जाये,ये तो वही बात हो गई की अपना उल्लू सीधा करना।

दोस्तों समझने वाली बात यह है की जगह के अनुसार लोगों ने पाप और पुण्य की परिभाषा अपने अनुसार तय कर दी है,जहाँ अनाज पैदा होता था वहाँ नॉनवेज को खाना पाप मान लिया गया,और जहाँ खेती नहीं होती थी वहां नॉनवेज को बड़े स्वाद से खाया जाता है,इंसान इस धरती का सबसे समझदार प्राणी है। अपने हिसाब से चीज़ों को,मन को, विचारधारा को बदल लेना वो बखूबी जनता है।

चीन वाले कॉकरोच को, सांप को भी खा लेते हैं, उसमें उन्हें कोई भी घिन नहीं आती और हमारे यहाँ उनको ये सब खाते देख कर घृणा होती है, देखा जाये तो वो भी तो इंसान ही हैं बस फर्क ये है की वहाँ की मान्यताएं अलग हैं, ना तो वहाँ नॉनवेज खाना पाप माना जाता है,ना वो इसको गंदा मानते हैं,तो यहाँ ये बात समझनी बहुत आसान है की गन्दा या अच्छा कौन निर्धारित करता है, जवाब आसान है- हमारा मन ही ऐसा करता है।

दोस्तों एक बात समझ आ जाये तो सारी समस्याओं का हल हो सकता है की मन की कुदरती प्रोग्रामिंग ही ऐसी होती है की उसका काम ही होता है ठप्पे लगाना, तुलना करना, बुरा देखना, मीन मेख निकालना, निष्कर्ष निकालना वो अपने हिसाब से धारणाएं बनाना व उन धारणाओं को ही सही मानना यही वो करता है, मन के इस खेल को समझते ही बहुत सारे सवालों के जवाब मिल जाते हैं।

तो दोस्तों ये सारा खेल मन का है की वो क्या मान रहा है, जिस पोट्टी को मन गन्दा मान रहे है वही पोट्टी (गन्दगी) को साफ करना किसी का काम भी होता है जिससे उसे रोटी मिलती है,लेकिन उस इंसान के मन ने पोट्टी को गन्दा नहीं माना होता, सभी ने देखा होगा की गाँव, कस्बों में बच्चे धूल, मिट्टी में खेलते रहते हैं, कहीं भी पोट्टी कर ली हाथ धोये तो धोये नहीं तो कोई बड़ी बात नहीं।

दोस्तों हमारे भारत देश में तो गाय को भगवान माना जाता है और माना जाता है की गाय के गोबर से शुद्ध चीज़ कुछ भी नहीं होती है यही कारण है की आज भी घर को गोबर से लीपना, गोबर के उपले बनाना उनका इस्तेमाल करना कितना शुद्ध, कितना पुण्य का काम माना जाता है, गौशाला में काम करने वाले लोगों को गोबर से जो पोट्टी का ही एक रूप है उससे कोई दिक्कत नहीं होती, बल्कि गाय की इसी पोट्टी से विभिन्न पदार्थ बनाए जाते हैं, बायो गैस का प्रयोग हम घर का खाना बनाने में करते हैं, गाय की इसी पोट्टी से बनी खाद से अनाज, सब्जियां पैदा करी जाती हैं जिनको हम बड़े चाव से खाते हैं।

दोस्तों दिल्ली में चिकन को तो लोग बड़े चाव से स्वाद ले लेकर खा लेते हैं क्यूंकि उनका मन उसको खाना स्वीकार कर चुका है, कुछ लोग चिकन खा लेते हैं पर मटन को खाना उनका मन अच्छा नहीं मानता, कुछ लोग सिर्फ अंडा खा लेते हैं, South India के लोग मछली के बिना खाना खाते ही नहीं हैं, तो सब मन का खेल है की वो किस चीज़ को अच्छा मान रहा है और किसको गन्दा।

दोस्तों अगर चीन में कोई कुत्ता या बिल्ली को खाता है तो हम कितना मुँह बिचकाते हैं, कोई पूछे भाई वो भी तो जानवर ही है उसमें भी तो जान है बस फर्क ये है की यहां के लोगों की विचारधारा में चिकन,मटन,मछली खाना मन ने स्वीकार करा हुआ है और चीन वालों के मन ने कुत्ते,बिल्ली को भी खाना स्वीकार करा हुआ है।

तो दोस्तों बात इतनी सी है की आपके मन ने पोट्टी को गन्दा मान रखा है,अगर ये बात सच्ची होती तो हॉस्पिटल में मरीज़ के तो कपडे भी कोई ना बदलता, हमारे घर के या सार्वजनिक शौचालय को भी कोई साफ ना करता।

दोस्तोँ हमजो दही हम खाते हैं उसमें लाखों जिवाणु होते हैं पर दही खाना कहीं गलत नहीं लगता क्योंकि हमारा मन उसको गलत या गन्दा नहीं मानता, जैन धर्म में आलू या शकरकन्दी को नहीं खाते हैं क्योंकि उनके मन को मना दिया गया की इसमें जिवाणु होते हैं जो जिंदा होते हैं उनकी हत्या नहीं होनी चाहिए,तो भाई असल में गन्दा कुछ नहीं होता है, मखखी दुध में गिर जाए तो हम दूध फेंक देते हैं और घी में गिर जाए तो मखी को फेंक देते हैं।

हमारे मन को समझो की वो कैसे खेल खेलता है हमारे साथ,बस यहीं से जीवन बदलने लगेगा,ज़िन्दगी बहुत हसीन होती है दोस्तों, ये खेल समझ आते ही जीवन बदल जाता है, बस जरूरत है एक कदम आगे बढ़ाने की,ये बात समझ आते ही की ये एक मानसिक परेशानी है और इसका इलाज संभव है, बदलाव आ जाता है।

दोस्तों श्री राजेंद्र जी के सानिध्य में हमारी पूरी Psycho Guru टीम आपकी मदद के लिए हमेशा अग्रणी है,इस असीम जीवन ऊर्जा, इस प्रज्ञा के प्रति समर्पित रहते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ें दोस्तों आपका भी जीवन खुशियों का प्रतीक बन जायेगा।

हम सब प्रभु के प्यारे बच्चे हैं और सारा ब्रह्मांड हमारा जीवन बेहतर हो, हम खुश रहें इसके लिए कार्य कर रहा है, भूल जाइए साफ सफाई के विचारों को,गन्दगी के विचारों को,पोट्टी से सम्बंधित विचारों को, और इन सबको भूलने में आपकी मदद करेंगे हम व हमारी पूरी Psycho Guru टीम. दोस्तों हमारी पूरी Psycho Guru टीम  दिल से ये चाहती है की एक ऐसे समाज का निर्माण हो जिसमें मन की नॉटंकी से कोई भी परेशान ना हो।

आपकी सेवा में हमेशा अग्रसर
Rajender Jodhpuria
(Psycho guru team)
Sirsa, Haryana
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